Mirza Ghalib Shayari In Hindi
आईना देख अपना-सा मुँह ले-के रह गए !!
साहब को दिल न-देने पे कितना ग़ुरूर था !!

लफ़्ज़ों की तरतीब मुझे-बांधनी नहीं आती “ग़ालिब !!
हम तुम को याद-करते हैं सीधी सी बात है !!

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया !!
वर्ना हम भी आदमी थे काम के !!
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ !!
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है !!
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’ !!
शर्म तुम को मगर नहीं आती !!
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है !!
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है !!
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’ !!
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे !!
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना !!
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना !!
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई !!
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई !!
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ !!
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ !!
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक !!
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक !!
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां !!
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन !!
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